घुड्ला त्यौहार क्या है ghudla tyohaar kya hai घुड्ला त्यौहार मारवाड़ इलाको में किया है और ये त्यौहार गणगौर के आस – पास किया जाता है जिसमे माता गौरी और भगवान् शिवजी की पूजा की जाती है जिसमे बहुत सारी महिलाए और कवारी बालिकाए इस न्रत्य में भाग लेती है और इनके अलावा विधवा महिला भी इस गौरी पूजा की हिस्सा लेती है |
घुड्ला मेला कब आयोजित होता है –ghudla tyohaar kya hai
घुड्ला मेला मारवाड़ में चेत्र बदी अष्टमी को लगता है और चेत्र सुदी तीज को घुड्ले के बर्तनों को विसर्जित किया जाता है जो बहुत बड़े धूम धाम से आयोजित किया जाता है |
घुड्ला न्रत्य किसकी याद में किया जाता है –ghudla tyohaar kya hai
घुड्ला गणगौर के आस -पास किया जाता है और ये त्यौहार माता गौरी और शिव जी की पूजा की जाती है जिसमे सुहागिन स्त्रियाँ और लडकिया इस त्यौहार में भाग लेती है |
घुड्ला त्यौहार क्यों मनाया जाता है –
ये बात 1490 ईस्वी की है जब मारवाड़ पर सतालदेव का राज था | उस समय मारवाड़ के राजकुमार मुस्लिम जागीरो को उजाडकर अपने ही राज्य में शामिल कर रहे थे | उस समय राजा जोधा के पुत्र दूदा ने मेड़ता की स्थापना की और बिदा ने उस मसय लाडनू और बिका ने बीकानेर की तीनो उस समय इन स्थानों की स्थापना कर रहे थे |
इसी वजह से वहा से आसपास के मुस्लिम और सूबेदार मारवाड़ पर कभी भी आक्रमण कर दिया करते थे | बात यहाँ तक ही नही थी उसी समय का फायदा उठाकर अजमेर के सूबेदार मल्लुखा भी मारवाड़ पर बार – बार आक्रमण कर रहे थे उस समय मारवाड़ पर हर कोई आम्क्रण करने पर तुला था |
कुछ समय बाद जब अजमेर के सूबेदार अपने सेनापति घुडले खा और सिरिया खां को मारवाड़ के मेड़ता सिटी पर आम्क्रण के लिए भेजा उस समय रास्ते में पीपाड़ गाँव के तालाब पर सुहागिन महिलाएं गणगौर की पूजा कर करी थी | जब अजमेर के सुब्बेदार ने उन महिलाए देखि और उनको पकडकर अपने साथ लेकर अजमेर के लिए रवाना हो गया |
जब ये बात मारवाड़ के सूबेदार सतालदेव को पता चली तो उसी समय अपनी सेना के साथ और अपने सेनापति को साथ लेकर अमजेर के खां का पीछा करने चल दिए | उधर से मेड़ता से और बीकानेर से दोनों सूबेदार ने भी अपनी सेना को लेकर मल्लुखा खां का पीछा करने निकल पड़े |
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मल्लुखा पीपाड़ से उन महिलाऔ को लेकर कोसाणा तक पंहुचा ही था तब तक मारवाड़ की सेना ने पकडकर हमला बोल दिया जिसमे मल्लुखा खां तो अपनी जान बचाकर भाग निकले लेकिन उनके सेनापति घुड्ले खां को मार दिया और उन महिलाए को वहा से मुक्त करवाकर घुड्ले खां के शरीर को पुरे मारवाड़ में घुमाया |
घुड्ले खां का सिर काटकर उन स्त्रियो को दे दिया गया जिनको घुड्ले की सेना उठाकर लेकर गयी थी और वो स्त्रियाँ घुड्ले का सिर लेकर पुरे गाँव में गीत गाते और नाचते हुई अपने राजा की बहादुरी को प्रतीक किया और उन्हें मान – सम्मान से वापस लेकर आने की खुशी में वो स्त्रियाँ गीत गति हुई राजा की प्रशंसा की |
घुड्ला त्यौहार को केसे मनाते है ??
घुड्ला त्यौहार गणगौर के आस पास मनाया जाता है उस दिन कवारी लडकिया और महिलाये कुम्हार के पास से एक मिट्टी का घडा लाती है और उसमे छोटे – छोटे छिद्र बना लेती है |
फिर उस घड़े में दीपक को जलाकर एक साथ समहू बनाकर गीत गाते हुए गली – गली घूमकर अपने सुब्बेदार की प्रसंशा करती है और घुड्ले को एक संदेश देती है |
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दीपक में जो छेद किये होते है उनको घुड्ले को तीर के लगे घाव का प्रतीक मानती है और उस घड़े में रखे दीपक को उसमे जीवात्मा को प्रतीक माना जाता है |
घुड्ला में शामिल महिलाये को तिजनिया कहा जाता है | और वो गली गली घुमती हुई गाती है –
घुड्ले रे बांध्यो सूत ,घुडलो घुमेला जी गुमेला ||
स्वागण बारै आग , घुडलो घुमेला जी घुमेला ||
इसका हिन्दी में मतलब ये होता है की मारवाड़ की सुहागिन स्त्रियाँ घुड्ले खां को चेतावनी देती है की ये सुहागिन स्त्रियाँ माता पार्वती और शिव जी की पूजा करने जा रही है , घुड्ले खां रोक सके तो रोक ले इन सुहागिन स्त्रियों को |
Ghudla Tyohaar Kya Hai
इसके बाद घुड्ले के दुसरे दिन मारवाड़ में लोटियो जी का मेला आयोजित होता है | उस दी शाम के समय सभी महिलाए और लडकिया एक टोली बनाकर , और अपने सर पर छोटे और बड़े तीन -चार और पांच तक मिट्टी के बरतें रखकर गीत गाती हुई पास के कुई और तालाब में जाती है उन मिट्टी के बर्तनों में पानी भरकर लाती है |
उसी पानी से माता पार्वती की पूजा की जाती है और आज भी मारवाड़ में गणगौर पर पानी पिलाने के लिए लोटे चांदी , पीतल , और ताम्बे के होते है और उन सब पर रोली मोली की जाती है |
इस त्यौहार को मारवाड़ के हर गाँव में मनाया जाता है और वो भी हर्ष -उल्लास के साथ | दोस्तों आज भी राजस्थान में प्राचीन परम्परा है और उस परम्परा को धूम धाम से मनाया जाता है इसलिए तो कहा जाता है “ मारो रंगीला राजस्थान “||
राय –
दोस्तों आज के इस लेख में घुड्ला त्यौहार ( ghudla tyohaar kya hai) के बारे में जाना है जो शायद ही मारवाड़ के अलावा लोग घुड्ला त्यौहार के बारे में जानते थे | यदि मेरे द्वारा लिखा गया आर्टिकल्स अच्छा लगा हो तो आगे शेयर करिये |
Thank you so much ye article likhne ke liye