खाटू श्यामजी की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में : Khatu Shyam ji Temple Rajasthan
आज हम भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक खाटू श्याम मंदिर के बारे में बताने जा रहे है। भगवान खाटू श्याम के आज के समय मे करोड़ों श्रद्धालुओं है जो कि हमेशा उनकी सेवा के लिये उपलब्ध रहते है। अगर आप भगवान खाटू श्याम के इतिहास को नही जानते है तो आज हम आपको अपने इस आर्टिकल के माध्यम से भगवान खाटू श्याम ( Khatu Shyam ji Temple Rajasthan ) इतिहास के बारे में बतायेंगे –
भगवान खाटू श्याम का मंदिर Khatu Shyam ji Temple Rajasthan –
आपकी जानकारी के लिये बता दे कि भगवान खाटूश्यामजी का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थापित है । ये यहाँ आज से करीब 1000 वर्ष पूर्व राजा रूपसिंह चौहान के द्वारा स्थापित किया गया था लेकिन औरंगजेब के द्वारा 1679 में इस मंदिर को तोड़ दिया गया था। 1720 में इस मंदिर की पुनः आधारशिला रखी गयी थी जिसके बाद आज यहाँ भव्य मंदिर बनकर स्थापित किया गया है।
भगवान खाटू श्याम का इतिहास Khatu Shyam ji Temple Rajasthan –
भगवान खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल से माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान खाटू श्याम पांडव पुत्र भीम के पौत्र है । भगवान खाटू श्याम के अच्छे कर्म और आचरण के कारण भगवान कृष्ण ने उन्हें ये वरदान में अपना नाम दिया था। दरअलस खाटू श्याम का असली बर्बरीक है लेकिन इस वरदान के बाद आज भी लोग इन्हें बर्बरीक के नाम से ना जान कर खाटू श्याम के नाम जानते है।
कैसे हुआ खाटू श्याम मंदिर का निर्माण –
इस बारे में ऐसा कहा जाता है की जब कलयुग की शुरुआत हुई तब राजस्थान के खाटू गाँव में उनका सिर मिला था | कहा जाता है की सबसे ज्यादा अद्भुत लोगो को तब हुआ जब वहां कड़ी गाय के थन से अपने आप ही दूध निकलने लगा | इस चमत्कारी देखकर वहां के लोग हैरान हो गये और वहां की मिट्टी को खोदा गया तो वहां बाबा का सिर मिला | सिर के मिलने के बाद लोग सोच में पद्द गये की आखिर इस सिर का करे तो क्या करें फिर बाबा के सिर को सर्वसम्मानित से एक पंडित को दे दिया इस बीच खाटू के शासक रूप सिंह को सपना आया और उस जगह मंदिर का निर्माण शुरू किया गया और खाटूश्यामजी की मूर्ति स्थापित की गयी |
भगवान खाटू श्याम की कहानी Khatu Shyam ji Temple Rajasthan –
भगवान खाटू श्याम का जन्म महाभारत काल के मध्य खंड में हुआ था। दरअसल पांडव पुत्र भीम के बेटे घटोत्कच ने दैत्यराजा मूर (प्रागज्योतिषपुर,आसाम) की पुत्री कामककंटकटा से किया था। कामककंटकटा को मोरवी के नाम से भी जाना जाता है। इन दोनों की संतान का नाम बर्बरकी था । बर्बरीक बचपन से ही अपनी माता की सेवा और भगवान कृष्ण जी से युद्ध कला सीखने के लिये बहुत सीरियस रहा करते थे।
इसके बाद बर्बरकी ने भगवान शिव जी से वरदान पाने की तपस्या की थी। इस तपस्या से खुश होकर भगवान शिव जी ने बर्बरकी को तीन ऐसे बाण दिये जिनका उपयोग करके बर्बरकी अकेले तीनो लोक के किसी भी युद्ध को क्षण मात्र समय मे जीत सकता था। भगवान शिव से ये वरदान पाकर बर्बरकी काफी खुश था । जब महाभारत का युद्ध हो रहा था तो बर्बरकी ने अपनी माता से इस युद्ध को देखने अनुमति मांगी थी , बर्बरकी माता को ये बात अच्छे से पता थी कि बर्बरकी किसी भी पक्ष के तरफ से युद्ध लड़ेगा तो वो पक्ष सिर्फ कुछ पल में जीत जायेगा।
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लेकिन बर्बरकी की माता ने जब ये बात पूछी तो बर्बरकी ने कहा कि वो उस पक्ष के तरफ से युद्व लड़ेगा जो कि हार रहा होगा। बर्बरकी कि माता को लगा वो अपने पिता के तरफ से युद्ध लड़ेगा क्योंकि पांडव और कौरव की इस लड़ाई में कौरवो के पास भीष्मपितामह से लेकर ऋषि द्रोणाचार्य जैसे बड़े ऋषि गुरु थे। लेकिन अपने बेटे की शक्तियों से अनभिज्ञ थी कि उनका बेटा अकेले इन सब पर भारी था।
बर्बरकी माता से आज्ञा पाने के बाद महाभारत के युद्ध मे शामिल होने के लिये चल पड़ा । भगवान कृष्ण जी ये सब अपनी दूर दृष्टि से देख रहे थे । भगवान कृष्ण जी ने ब्राह्मण की वेशभूषा धारण करके बर्बरकी से रास्ते पर मिले । उंन्हे इस बात की भनक थी कि अगर बर्बरकी इस युद्ध मे शामिल होगा तो हो सकता है की इस युद्व के परिमाण कुछ और हो।
जब भगवान कृष्ण जी ब्राह्मण की वेषभूषा धारण किये हुये थे तो उन्होनें बर्बरकी का रास्ता रोक लिया। उन्होंने बर्बरकी से पूछा हे बालक सिर्फ तीन बाण लेकर कहा जा रहे हो । इसके जवाब में बर्बरकी ने कहा वो महाभारत का युद्ध देखने जा रहा हूँ जिसमे जो हारेगा उसके तरफ से युद्ध लड़ूंगा ।
भगवान कृष्ण ने उपहास पूर्वक बर्बरकी से कहा कि सिर्फ तीन बाण से युद्ध करने चले हो । इससे तो तीन सैनिक भी ना मारे जायेंगे।
बर्बरकी को ये बात सुनकर कहा कि ये कोई साधारण बाण नहीं है बल्कि ये उंन्हे भगवान शिव जी ने अपने वरदान के रूप में दिया है। मुझे इस युद्ध को खत्म करने के लिये तीन बाण की आवश्यकता भी ना पड़ेगी बल्कि मात्र सिर्फ एक बाण से ही पूरा युद्ध खत्म कर सकता हूँ। भगवान कृष्ण जी जानते थे लेकिन वो बर्बरकी की परीक्षा ले रहे थे ताकि उन्हें युद्ध मे शामिल होने से रोका जाये।
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भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरकी से कहा कि पीपल के पेड़ के पत्तो को भेद कर दिखाओ । बर्बरकी ने भगवान कृष्ण की बात सुनकर अपना बाण निकाला और पीपल के पत्ते को भेद दिया। फिर बर्बरकी ने भगवान कृष्ण जो की ब्राह्मण की वेशभूषा में थे उनसे सवाल पूछा कि की वो कौन है और किस कार्य से उनके पास आये है। तब ब्राह्मण रूपी कृष्ण जी ने कहा उंन्हे बर्बरकी का शीश चाहिये। कृष्णा जी की ये बात सुनकर बर्बरकी समझ गया कि ये कोई साधारण आदमी नहीं है।बर्बरकी ने कृष्ण जी से निवेदन किया कि वो अपने असली रूप में आये ।
बर्बरकी की निवेदन करने पर भगवान कृष्ण ब्राह्मण की वेशभूषा त्याग कर अपने असली रूप में आ गये। चूंकि भगवान कृष्ण बर्बरकी के गुरु थे, जिन्हें देखकर बर्बरकी अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने पूरी रात भगवान कृष्ण जी की आराधना की और दूसरे दिन जब फाल्गुन शुक्ल द्वादशी तिथि तब उसने अपना शीश काटकर भगवान कृष्ण जी को दे दिया।
भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरकी की माता का मान रखते हुये बर्बरकी की शीर्ष को एक पहाड़ पर रख दिया जहाँ से उसे पूरे महाभारत का दृश्य आराम से दिखाई दे। कृष्ण जी ने साथ मे बर्बरकी को आशीर्वाद दिया कि आने वाले समय मे लोग बर्बरकी को उनके नाम श्याम से जानेंगे और जो भी भक्त टूट चुका होगा अगर वो खाटू श्याम के पास आता है तो उसे उसके दुखों से छुटकारा मिलेगा।
खाटू श्याम जी से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी –
- खाटू श्याम जी भगवान राम के बाद से सबसे बड़े धनुधारी थे।
- खाटू श्याम जी अपने पिता घटोत्कच और दादा भीम से काफी शक्तिशाली था,उसने एक बार अज्ञानता वश पांडव पुत्र भीम को अधमरा हालात कर दी थी।
- खाटूश्यामजी के पास ऐसे 3 बाण थे जो की किसी भी दिशा में चलाने के बाद वापस उन्ही के पास जाते थे।
- खाटू श्याम जी का मंदिर 1000 साल से भी पुराना माना जाता है ।
खाटू श्याम के नाम Khatu Shyam ji Temple Rajasthan –
खाटू श्याम जी को कई नामों से जाना जाता है जिसमे जैसे कि श्याम बाबा, दीनों का नाथ, कलयुग का अवतार, शीश का दानी, खाटू वाला श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, नील घोड़े का असवार, खाटू नरेश ।
खाटू श्याम जी की आरती
ओम जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे | खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे ||
रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे | तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े ||
गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे | खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले ||
मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे | सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे ||
झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे | भक्त आरती गावे, जय – जयकार करे ||
जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे | सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम – श्याम उचरे ||
श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे | कहत भक्त – जन, मनवांछित फल पावे ||
जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे | निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे ||
ओम जय श्री श्याम हरे ….बाबा जय श्री श्याम हरे ||
खाटू श्याम जी आरती समय तालिका –
आरती | शीतकालीन | ग्रीष्मकालीन |
मंगला आरती | प्रात: 5:30 बजे | प्रात: 5:30 बजे |
श्रंगार आरती | प्रात: 8:00 बजे | प्रात: 7:00 बजे |
भोग आरती | दोपहर: 12:30 बजे | दोपहर: 12:30 बजे |
संध्या आरती | शाम: 6:30 बजे | शाम: 7:30 बजे |
शयन आरती | रात्रि: 9:00 बजे | रात्रि: 10:00 बजे |
खाटू श्याम जी मंदिर का समय –
सर्दियाँ | गर्मियाँ |
सुबह : 5:30 बजे | सुबह : 4:30 बजे |
दोपहर: 1:00 बजे | दोपहर: 12:00 बजे |
शाम: 5:00 बजे | शाम: 4:00 बजे |
रात: 9:00 बजे | रात: 10:00 बजे |
खाटू श्याम कुंड Khatu Shyam ji Temple Rajasthan –
मंदिर के पास एक पवित्र तालाब है जिसे श्याम कुंड कहा जाता है। कहा जाता है कि यहीं से खाटू श्याम जी का सिर निकला था। भक्तों के बीच एक लोकप्रिय धारणा यह है कि इस तालाब में एक डुबकी लगाने से व्यक्ति अपनी बीमारियों से ठीक हो सकता है और उन्हें अच्छा स्वास्थ्य मिल सकता है। भक्ति भाव के साथ, लोगों का तालाब में डुबकी लगाना कोई असामान्य दृश्य नहीं है। यह भी माना जाता है कि हर साल लगने वाले फाल्गुन मेला महोत्सव के दौरान श्याम कुंड में स्नान करना विशेष रूप से कल्याणकारी होता है।
बाबा खाटू श्याम 2024 का मेला
श्री श्याम मंदिर कमेटी ने 2024 में होने वाले मेले की तिथि जरी कर दिया गया है ऐसे में भक्तो की भीड़ बढ़ने लगी है | हेर साल फाल्गुन मास की एकादशी को बाबा खाटू श्याम का जन्मदिवस मनाया जाता है | ये मेला 10 दिवसीय होता है जो इस साल बाबा श्याम का मुख्य लक्खी मेला 20 मार्च को होगा | यह मेला 12 मार्च से शुरू होकर 21 मार्च तक आयोजित होगा | बाबा श्याम को सुजानगढ़ का निशान चडाने के बाद इस मेले का समापन किया जाता है | इस साल भक्तो के लिए अतिरिक्त सुविधाए की है जैसे भक्तो के लिए लाइनों की संख्या को बढ़ाकर 14 क्र दी गयी है और पक्की बेरिकेटिंग क्र दिया गया है इसके साथ पंखो की सुविधाए भी बढाई गयी है ताकि भक्तो को गर्मी के समय में परेशानी ना हो |
खाटू श्याम के मंदिर तक कैसे जाये
खाटू श्याम के मंदिर आप ट्बरेन और सडक के माध्यम से बहुत ही आसानी से जा सकते है | मंदिर से करीब 17 किलोमीटर रिंग्स रेलवे स्टेशन है जिससे सभी जगह की रेल मिल जाती है |
ट्रेन के अलवा आप अपने निजी साधन की मदद से भी आ सकते है | खाटू मंदिर तक बहुत ही अच्छी सडक मार्ग है जिससे आप आसानी से पहुचे सकते है | अन्यथा जयपुर से बस और निजी कार , मिनी बस , इको , टेम्पू साधन मंदिर के लिए आते – जाते है | यदि आप राजस्थान से बाहर से हो तो आप हवाई यात्रा के माध्यम से भी आ सकते है | आप जयपुर एयरपोर्ट आकर वहा से प्राइवेट साधन मिलेंगे जो आपको खाटू श्याम के मंदिर तक पहुचा देंगे |
खाटू श्याम मंदिर के संचालक –
खाटू श्याम में दान ऑनलाइन –
श्री श्याम मंदिर कमेटी को online donation देने के लिए दिए गये QR CODE को स्कैन करें और अपनी स्वेच्छा अनुसार दान करें |
खाटू श्याम मेला पार्किंग इंतजाम
खाटू श्याम मंदिर मेला निरीक्षण
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