शाकम्भरी माता मंदिर सांभर राजस्थान का इतिहास : Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan

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शाकम्भरी माता मंदिर सांभर राजस्थान का इतिहास : Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan

आज हम आपको Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan के बारे में बात करने जा रहे है जो  राजस्थान के सीकर जिले के  उदयपुर वाटी में स्थित है। ये राजस्थान के अलावा उत्तरप्रदेश के सहारनपुर के पास भी स्थापित  है। राजस्थान और उत्तरप्रदेश दोनो जगह इन्हें  लोकदेवी के  नाम से भी जाना जाता है।

शाकम्भरी माता का मंदिर जयपुर से 100 किलोमीटर दूर सांभर नामक गांव में स्थापित है। शाकम्भरी माता को मां दुर्गा का दूसरा रूप माना जाता   है।शाकम्भरी माता चौहान क्षत्रिय वंश की कुलदेवी है जिनकी पूजा आज भी  चौहान वंश के लोग करते है। लेकिन चौहान वंश के अलावा अन्य लोग भी शाकम्भरी माता की पूजा करते है । पूरे देश भर में  शाकम्भरी माता के कुल तीन शक्तिपीठ स्थापित किये गये है जिनको लेकर अलग-अलग कहानी बताई जाती है।

Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan:-

शाकम्भरी माता शक्तिपीठ 1 

Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan
Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan

शाकम्भरी माता का सबसे पुराना शक्तिपीठ राजस्थान के सीकर जिले के उदयपुर घाटी में स्थित है।  यहां इन्हें सकराय माता जी के नाम से  जाना से जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसमें  शक्तिपीठ की स्थापना पांडवों ने  की थी।  महाभारत के बाद जब पांडव अपने सगे संबंधियों की युद्ध मे हत्या  करने के बाद काफी ग्लानि  में थे । 

इसलिए  इस पाप से पश्चाताप करने के लिये  सभी पाण्डव अरावली के   पहाड़ी पर रुके हुये थे। युधिष्ठिर ने पूजा अर्चना करने  के लिये माँ शंकरा की स्थापना की थी जिसके बाद इस जगह को  शाकम्भरी  तीर्थ  के नाम से जाना जाने लगा गया। माता शाकम्भरी  का यह स्थल अब काफी आस्था का केंद्र बना हुआ है।यहाँ पर आम्रकुंज जल का झरना भी है जो कि काफी सुंदरता का केंद्र है । इसका पानी भी काफी साफ है जो कि पीने योग्य है।  इस मंदिर में कई शिलालेख बने हुये जिससे देखने से हमे ये जानकारी मिलती है  मंदिर के निर्माणकार्य में खंडेलवाल वैश्य समाज ने अपना धन लगाया था। ये भी माना जाता है कि इन्हें खंडेलवाल समाज के द्वारा कुलदेवी के रूप  स्वीकार किया था। यहाँ पर आपको  माता शाकम्भरी के अलावा आपको धनस्वामी कुबेर , गणेश जी  की पुरानी मूर्ति  देखने को मिल जाती है।

शाकंभरी शक्तिपीठ 2

माता शाकम्भरी का दूसरा शक्तिपीठ भी राजस्थान के सांभर जिले के पास में स्थित है।शाकम्भरी माता सांभर जिला की अधिष्टित्री देवी मानी जाती है। ऐसा माना जाता है की इस गांव का नाम माता  शाकम्भरी के  नाम पर ही  रखा गया है। ऐसा माना जाता है की ये स्थान पहले महाभारत के समय असुर राजा वृष्पर्ण के साम्रज्य  का हिस्सा था। यहाँ पर असुरों के कुलगुरु शुक्राचार्य निवास किया करते थे। यही पर शुक्रचार्य ने अपनी बेटी  देवयानी का विवाह नरेश ययाति के साथ संपन्न किया था। यहां देवयानी को समर्पित एक मंदिर के पास स्थापित किया गया  है। ऐसा मान्यता  की  माता शाकम्भरी  की असली मूर्ति यही स्थापित है। ये भी कहा जाता  है कि यहाँ मूर्ति स्थापित नहीं  की  गयी है बल्कि खुद भूमि से मूर्ति निकली है। वही आपको  यहाँ एक विशाल कुंड और सरोवर  देखने को मिल जाता है जिसे नरेश यताती ने  अपनी दोनों पत्नी देवयानी और शर्मिष्ठा के नाम से स्थापित है ।

माता शाकम्भरी शक्तिपीठ 3 

माता शाकम्भरी का तीसरा शक्तिपीठ  उत्तरप्रदेश के मेरठ जिला के पास सहारनपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है। इस शक्तिपीठ में माता शाकम्भरी के अलावा भीमा देवी,भ्रामरी देवी,शताक्षी देवी भी स्थापित है। ये स्थान गांव  बेहट से 15 किलोमीटर दूर स्थित है।  ऐसी यहाँ की मान्यता है कि  यहां माता शाकम्भरी की आराधना  करने से  भक्त के घर मे  कभी भी किसी भी  प्रकार की कमी नहीं होती है।

चौहान वंश के शासक ने की थी मंदिर की स्थापना –

Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan
Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan

ऐसा माना जाता  है कि राजस्थान के सांभर जिले मौजूद माता शाकम्भरी के मंदिर की स्थापना सातवी सताब्दी मे चौहान वंश के राजा  वासुदेव ने  की थी। ऐसा बताया जाता है कि राजा वासुदेव ने सिर्फ मंदिर का निर्माण करवाया था जबकि यहाँ मूर्ति  स्वयं ही धरती से निकली थी  । इसी कारण से माँ शाकम्भरी को चौहान वंश की कुल देवी भी माना जाता है। आज भी सांभर जिला में कोई भी शुभ कार्य अगर करने जा रहे है तो सबसे पहले माता शाकम्भरी का आशीर्वाद जरूर लिया जाता है ताकि वो काम सफल हो जाये ।

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सांभर झील की ऐसे हुई थी उत्त्पत्ति –

लोकथाओ के अनुसार पहले सांभर जिला बिल्कुल निर्जन स्थान था। यहां पेड़ पौधे तो दूर की बात यहां पानी की एक बूंद तक मौजूद नहीं थी। ऐसे में यहाँ कई ऋषि मुनि आये जिन्होनें यहाँ के हालात देखकर अचंभित हो गए। उन्ही में से एक  माता शाकम्भरी थी जिन्हें  इस स्थान की ये हालात देखकर उनकी आंख के आंसू आ गया । माता शाकम्भरी ने  100 वर्ष इसी स्थान पर घनघोर तपस्या की थी। इस तपस्या की वजह से ये पूरा स्थान हरा भरा हो गया और यहाँ कई कीमती आभूषण के बगीचे  बन गये।  लेकिन जब इस स्थान पर अन्य क्षेत्र के शासकों की नज़र पड़ी तो इस स्थान पर कब्जा करने के  लिये एक दूसरे से युद्व करने लगे । 

इस कारणवश माता शाकम्भरी ने पूरी जमीन को नमक की झील पर परावर्तित कर दिया। आज भी संभार जिला यहां के माता के नाम पर पड़ा  है और झील का नाम भी इसी नाम पर इसी लिया रखा गया है। सांभर झील  करीब 90 वर्ग मील के नमक झील के रूप में  आज भी मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि  कुछ साल पहले ये और भी बड़ी थी। 

चाणक्य और चंद्रगुप्त रह चुके है प्रवास में –

ऐसा बताया जाता है कि आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य भी सांभर झील में कुछ समय निवास किया था। उस समय ये शुंक प्रदेश के अंतर्गत आता है। इसी प्रकार आदि शंकराचार्य ने भी यहां काफी समय निवास किया है। यहाँ  पर उनका आश्रम बना  होना इस   बात का प्रमाण है । ये भी माना जाता है कि महाभारत के समय ये स्थान घने जंगलों के बीच छुप गया था  ।फिर एक अंधे व्यक्ति नैन गुज्जर के द्वारा इस मंदिर खोज की गयी, जो की स्वयं रास्ता भटक गया था।

Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan
Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan

माता के है कई रूप –

ऐसी मान्यता है कि इन्हें वैष्णो देवी, चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी, कामाख्या, शिवालिक पर्वत वासिनी, चंडी, बाला सुंदरी, मनसा, नैना और शताक्षी देवी के रूप में भी पूजा  जाता है। इसके अलावा इनके कई मंदिर है जैसे कि उत्तराखंड के त्रियुगीनारायण, नगेवाड़ा, कटक, हरिद्वार, कुरालसी, शाहबाद और कांधला के लोकप्रिय मंदिर हैं। मां बनशंकरी देवी का मंदिर कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले में स्थित है, जिसे शाकंभरी देवी का ही एक रूप माना जाता है।

माता शाकम्भरी सांभर के शक्तिपीठ  कैसे पहुंचे –

अगर आप माता शाकम्भरी के सांभर शक्तिपीठ पर जाना चाहते है तो  तीन तरीके से जा सकते है । 

  • हवाई जहाज – अगर आप माता शाकम्भरी के सांभर शक्तिपीठ पर हवाई जहाज के माध्यम से जाना है तो आपको  जयपुर हवाई अड्डा पर कही से पहुंचे सकते है।
  • ट्रैन के माध्यम  से  भी आप यहाँ पहुंच सकते है। आप जयपुर से फुलेरा रेलवे स्टेशन पर उतरकर वहा से महज 15 किलोमीटर दूर सांभर स्थित है और सांभर से ,महज 5 किलोमीटर की दुरी पर झील में स्थित ,मदिर है | 
  • आप अपने कार या बाइक के माध्यम से भी माता के मंदिर तक पहुच सकते है | जिस तरह आपको जाने में सुविधा होती है वेसे आप जाकर दर्शन कर सकते है | 

शाकम्भरी माता मंदिर समय -Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan

शाकम्भरी माता मंदिर के खुलने का समय सुअभ के 6 बजे से लेकर शाम के 8 बजे तक का होता है |

 

FAQ -Shakambhari Mata Temple Sambhar History of Rajasthan

शाकम्भरी माता का मंदिर सबसे बड़ा और पुराना मंदिर कहाँ स्थित है ? 

शाकम्भरी माता मंदिर सबसे बड़ा और प्राचीन सिद्धपीठ उतरप्रदेश के सहारनपुर में है जिससे  वैष्णो देवी, चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी, कामाख्या, शिवालिक पर्वत वासिनी, चंडी, बाला सुंदरी, मनसा, नैना और शताक्षी देवी के रूप में जाना जाता है | 

माँ शाकम्भरी माता किसकी कुलदेवी है ?

शाकम्भरी माता चौहान सहित अनेक राजपूतो , कश्यपो , शर्मा और वैश्यों जातियों की कुलदेवी माना जाता है |

शाकम्भरी माता का दूसरा नाम क्या है ? 

माँ शाकम्भरी ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी,भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा है।

माँ शाकम्भरी देवी का जन्मदिन कब आता है ? 

माँ शाकम्भरी देवी का जन्म 10 जनवरी , शुक्रवार को पौष मास की पूर्णिमा को है इस दिन माता शाकम्भरी की जयंती मनाई जाती है |

शाकंभरी देवी  का मेला कब लगता है ?

माँ शाकंभरी देवी  का मेला एक वर्ष में दो बार, हिंदू कैलेंडर के अश्विन और चैत्र महीने (नवरात्र के दिनों के दौरान), साथ ही होली के समय, प्रसिद्ध शाकंभरी देवी मेला का आयोजन किया जाता है।

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मेरा नाम गणेश चौधरी है। मैं आपको हिंदी में ब्लॉगिंग के माध्यम से टेक्नोलॉजी, करंट अफेयर्स, आदि के बारे में जानकारी देता हूँ। दिल की गहराइयों से एक बार फिर आपका स्वागत है। शुक्रिया

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